बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ - भाषण
आदरणीय मुख्य अतिथि महोदय/महोदया, शिक्षक गण, और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों!
आज मैं आप सबके सामने एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करना चाहता/चाहती हूँ - "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ"। ये सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि राष्ट्रीय सोच है, जिसका मकसद हमारे समाज में बेटियों के प्रति सम्मान और शिक्षा को बढ़ावा देना है।
सदियों से भारत में लिंग अनुपात असंतुलित रहा है। भ्रूण हत्या जैसी जघन्य कुरीतियाँ आज भी समाज में कहीं ना कहीं मौजूद हैं। एक बेटी को बोझ समझना और उसके जन्म से पहले ही उसका ख़त्म कर देना, सभ्य समाज के लिए कलंक है।
बेटियां मां, बहन, पत्नी और समाज की रीढ़ होती हैं। वो स्नेह, समर्पण और शक्ति का प्रतीक हैं। लक्ष्मी के रूप में धन-धान्य लाती हैं, सरस्वती के रूप में ज्ञान देती हैं और दुर्गा के रूप में रक्षा करती हैं। फिर बेटियों को बोझ क्यों माना जाए?
शिक्षा किसी भी व्यक्ति के विकास का आधार है। शिक्षित बेटी न केवल अपना भविष्य संवारती है बल्कि पूरे परिवार को तरक्की की राह पर ले जाती है। वो समाज में अच्छा पद प्राप्त कर सकती है, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकती है और अपने विचारों से बदलाव ला सकती है।
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान इसी सोच को बल देता है। इस अभियान के तहत सरकार लिंग जांच पर रोक, शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति जैसी कई योजनाएं चला रही है। लेकिन सिर्फ सरकारी प्रयासों से बदलाव नहीं लाया जा सकता।
ज़रूरत है समाज में जागरूकता लाने की। हमें अपनी बेटियों को बचाने और उन्हें शिक्षा देने का संकल्प लेना होगा। बेटे और बेटियों में भेदभाव ख़त्म कर उन्हें समान अवसर देने होंगे। तभी हम एक खुशहाल और समृद्ध समाज का निर्माण कर पाएंगे।
आइए हम सब मिलकर ये शपथ लें कि:
- हम अपनी बेटियों को बचाएंगे और उन्हें शिक्षा देंगे।
- हम समाज में लिंग भेदभाव को ख़त्म करने का प्रयास करेंगे।
- हम बेटियों को सशक्त बनाएंगे ताकि वो अपने सपनों को पूरा कर सकें।
धन्यवाद!
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